Sunday, August 15, 2010

बापू का सरवरपुर

सबसे पहले बापू को नमन. माहौल ऐसा कि बापू की सबसे ज्‍यादा जरूरत है. गांधी जी से प्रेम करने वाले लोग हैं,  घृणा करने वाले लोग हैं,  उसी घृणा ने गांधी जी की जान भी ली. लेकिन गांधी से महात्‍मा का वह महान सफ़र, अहिंसा का वो  रास्‍ता नमन योग्य है. घृणा और नफरत करने के  बदले में प्‍यार लुटाने की सीख, भाईचारे व अमन का संदेश देकर और सबसे ऊपर नफरतों के बीच दीवार बनकर बापू सच में  कमाल कर गए. इसीलिए आज भी  इस घृणा व हिंसा  के माहौल में... बापू और उनके बताए रास्‍ते से बेहतर क्‍या हो सकता है.

वास्तव में कुछ  महान मान्यवर सिर्फ इतना चाहते हैं की उनकी प्रासंगिकता राष्ट्रीय राजनीति में बनी रहे फिर चाहे कल्याण करना पड़े या माफ़ी-मास्टर बनना पड़े.  यदि चाहें तो में उन्हें बता सकता हूँ की सेकुलर सिर्फ वे ही नहीं हैं. पंजाब में समराला शहर के पास एक गाँव है सरवरपुर जहां 1947 के समय एक मस्जिद का विध्वंस हो गया था,  ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब वहां के गाँव वालो की सदिच्छाओं, जगजीवन जी और कृपाल जी के अथक प्रयासों और हम जैसे नासमझों की दुआओं से उसी मस्जिद का पुनर्निर्माण किया गया और उसकी चाबी गाँव के सबसे बुजुर्ग गाँव वासी दादा मोहम्मद को उस्मान साहब ( जो पंजाब वक्फ बोर्ड के चेयरमैन हैं )  की मौजूदगी में सौप दी गयी. पांच लाख से ज्यादा मस्जिदों वाले इस देश के मुस्लिम ऐसा कुछ करके एक नहीं अनेक उदाहरण पेश कर सकते हैं बशर्ते माफ़ी-मास्टर जैसे लोग उन्हें ऐसा करने दे. ये राजनीति भी  बड़ी दिलचस्प चीज़ है अब चाहे एक और 1947 हो जाये पर इनकी सत्ता बरकरार रहनी  चाहिए. वैसे भी सबसे बड़ी उपलब्धि तो आज ये है की साहब चर्चा में हैं. वर्ना यू पी में तो बहन की माया चलती है और माफ़ी मास्टर अब उसी मानसिक हालात में हैं जहाँ चर्चा के लिए इंसान कुछ भी करता है.
  
क्या हमारे सेकुलर देवता ये जानते हैं की सउदी अरब  में एक मुसलमान की असामयिक मौत का मुआवजा एक लाख दीनार है तो हिन्दू की असामयिक मौत का सिर्फ 6666 दीनार? क्या हम एक भी ऐसी मिसाल दे सकते हैं जब कभी पाकिस्तान या किसी अरब देश में कोई मंदिर पुनर्निर्मित हुआ हो या वहां का राष्ट्रध्यक्ष कोई गैर मुस्लिम बना हो? वैसे भी हमें उनसे क्या लेना देना क्योंकि हम हिन्दुस्तानी मानवतावादी हैं.  हिन्दू-सिखों ने मिलकर एक इबादतगाह बना दी  तो ऐसा मुसलमान क्यों नहीं कर सकते. कौन नहीं जानता लाहौर की  प्रसिद्ध  दातागंज बक्श दरगाह किस महारानी ने बनवाई थी. बापू तेरे देश में अगर मुलायम, अशोक सिंघल, करूणानिधि, सैयद शाहबुद्दीन जैसे समझदार लोग हैं तो मुझ जैसों की भी कोई कमी नहीं है. हमें मत बांटो ..  अँगरेज़ चले गए आप भी रहम करो,  सच कहूँ तो थोड़ी शर्म करो. पर ये लड़ाई इंसानियत से ज्यादा वोटों की है और उससे भी ज्यादा सत्ता-लोलुपता की है. अब इन्हें भला कौन समझाए कि हिंदी हैं हम वतन है, हिन्दोस्तान हमारा.  बापू के साथ-साथ सरवरपुर के हर वाशिंदे,  हर हिन्दुस्तानी  हर मानवतावादी को सलाम.