एक दिन हमारे एक मित्र ने कोर्ट का एक वाकया सुनाया जिसमे कानून में उलझ कर एक गरीब पर सच्ची गर्भवती महिला को जेल जाना पड़ा. दूसरे पक्ष के काबिल साथी ने इसका पूरा फायदा भी उठाया, जो प्रोफेशनली तो सही था पर कितना नैतिक था इसने हम सबको सोचने पर मजबूर कर दिया. उसी दिन सोचा कि यार सच कोई तो कहेगा, तो हम क्यों नहीं. सबसे पहले ये सुनिश्चित किया कि उस महिला के बालक का जन्म खुली हवा में हो, बस... वहीं से ये सिलसिला शुरू हो गया, लोग आते गए और कारवां बनता चला गया.
मेरे अनुज तुल्य कामेश्वर ने अपने बेफिक्र स्वभाव के विपरीत वकील होने के साथ-साथ एक इंसान भी होने का एहसास कराया. मीडिया के मित्र भी अपनी ओर से इस सफ़र में हमारा यथायोग्य साथ देते रहे और कैसे भूल सकता हूं उन विद्यार्थियों को जो अपना खर्चा कर इस परिवार के साथ कदम दर कदम चले. हमारा दायरा दिल्ली तक ही सिमटा था कि ब्लॉग का विचार आया, आप सबकी अनुकम्पा प्राप्त हुई तो विस्तार भी हुआ. कई ऐसे अति-प्रतिष्टित वकील, पूर्व न्यायधीश मुझसे मिले जिन्होंने आगे आकर मेरे मित्रों को और मुझे सराहा, इनमे से कई ने अपनी ओर से एक केस मुफ्त लड़ने के लिए मुझसे संपर्क किया और सिर्फ कहा ही नहीं किया भी.
मेरे एक अग्रज जो पत्रकारिता व मीडिया में ख़ासा दखल रखते हैं करीब तीन महीने पहले मुझसे मिले और हमारे काम की तारीफ़ करते हुए मुझसे सरकारी मदद के लिए आवेदन करने को कहा. ये मैं जानता हूं कि सरकारी गलियारों तक उनकी पहुंच है और दिल्ली की मुख्यमंत्री उनको काफी मान देती हैं, पर मैंने किसी सरकारी अनुदान के लिए उनको सविनय इनकार कर दिया. इस अवधि में उनसे बात होती रही और वे हमारा सदैव उत्साहवर्धन करते रहे, कई बड़ी देसी-विदेशी पुस्तकें छापने वाले एक प्रकाशन गृह से उन्होंने जन सुनवाई के सन्दर्भ में चर्चा की, ऐसा भी उन्होंने बताया.
पिछले एक साल से अधिक के समय में अपनी लेखनी से कई लेखकों ने हमें समृद्ध किया, क़ानूनी सलाह के लिए कई लोगों ने अपनी आपबीती हम तक पहुंचाई, कई पाठकों ने रोज़ हमारे ब्लॉग को पढ़ा और अपनी टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन किया. सभी का हम तहेदिल से शुक्रगुजार हैं कि आपने हमें स्नेह, विश्वास और आशीर्वाद दिया.
हमारी रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों, आशीर्वाद के इंतज़ार में...
जन सुनवाई