Friday, August 15, 2014

खुश रहने की स्वतंत्रता और डिप्रेशन

कितना अच्छा हो यदि हमारे क्रोध पर हमारा नियंत्रण हो जाये, वैसे भी स्वतंत्रता हर एक को चाहिए क्रोध करने वालों को भी और क्रोध दिलाने वालों को भी. आखिर स्वतंत्रता हमारा संविधान सम्मत अधिकार है. 

जब बार-बार कहने पर आपकी बात कोई नहीं सुनता तो आप के कहने से वो बदलने वाला नहीं है, आप तभी  किसी का कुछ कर सकते हैं जब कोई चाहे वर्ना हमारी तरह आपकी जिंदगी भी बेमायना होकर रह जायेगी और वैसे भी दुनिया चढ़ते सूरज को सलाम करती है और लोग आप को गलत कहने के ढेरों बहाने ढूंढ ही लेंगे. आपके हिस्से रह जायेंगी कुछ  अदद बीमारियाँ और ये जिंदगी...

जिसे जिंदगी कहना शायद जिंदगी की तौहीन होगा. वास्तव  में आप यदि तकलीफ में हैं तो  उसका कारण सिर्फ आप ही हैं, जीवन में महज ये संतोष कीजिये कि आपकी  कोशिश ईमानदार हो.

बाकि स्वतंत्रता उनका भी संविधान सम्मत अधिकार है जो आपकी नाक में दम करने का कोई मौका नहीं छोड़ते, फिर वे चाहे आपके ऑफिस वाले हों, तथाकथित शुभचिंतक हों या प्यारे-प्यारे परिवारजन .

जब  भी  घर   में  आर्थिक  तंगी  आती  है  तो  अपनी  योग्यता  पर  आदमी  को  शक  होने  लगता  है  और  फिर  शुरू  होता  है  डिप्रेशन,  ब्लड  प्रेशर  और  ना  जाने  क्या-क्या. काम  को  करना  तो  है  ही, सारे  बोझ  मन  से  उतार  कर  मस्ती  से  कीजिये  वर्ना  चहरे  पर  बजेंगे  बारह  और  आप  वक्त  से  पहले  ही  हो  जायेंगे फिस्स. बच्चे  इस  मामले  में  हमें  सिखा  सकते  हैं, ज्यादा  बड़ी  ख़ुशी  के  चक्कर  में  हम  छोटी-छोटी  खुशिया  दरकिनार  कर  देते  हैं  जबकि  उनसे  आनंदित  रहा  जा  सकता  है. अजी  मारिये  गोली  सारे  झंझटों  को  और  जिंदगी  का  आनंद  लूटिये  क्योंकि  हम  भी  स्वतंत्र  हैं खुश  रहने  के   लिए.

आप  दुःख, क्रोध तथा  महंगाई  से स्वतंत्रता पा सकें,  
ऐसी अभिलाषा के साथ आपको स्वतंत्रता दिवस की शुभकामना