Saturday, February 15, 2014

मैडम! सब कुशल मंगल है

गृह विभाग व पुलिस के बड़े अधिकारी कई बार बड़े काम के फैसले करते हैं पर जमीं तक आते-आते उनकी हवा निकल जाती है और कारवाई के स्तर तक तो वे बेमायने हो जाते हैं. यही वो वक्त होता है जब हम जैसे लोग मजबूर हो जाते हैं ये स्वीकारने के लिए कि क़ानून व्यवस्था रसातल में जा रही है. ऐसे में प्रशासनिक तंत्र लाचार और असहाय नज़र आता है, यूँ प्रतीत होता है गोया हम किसी कि गुलामी में जी रहे हैं. हद तब हो जाती है जब ये गुलामी सिर्फ नाजायज़ पैसे  की ताकत की होती है. बेहयाई का आलम ये कि उनमे से कई लोग अपनी ' योग्यता कि गौरव-गाथा ' मीडिया को सुनाते हैं और उम्मीद करते हैं कि वो कवरेज़ भी दे. गौरव गान के लिए प्रसिद्ध एक ऐसे ही अधिकारी से एक बड़े चैनल की नयी-नवेली पत्रकार ने पूछा कि आपकी पुलिस बिना लोगों के घर जाए पैसे लेकर कोर्ट में गलतबयानी कर रही है और कोर्ट को गुमराह कर रही है,  इस पर उनकी त्वरित प्रतिक्रिया देखिये, " मैडम! सब कुशल मंगल है, एवरी थिंग अंडर कंट्रोल, आप चाय-नाश्ता तो कीजिये बाकि सब भी ठीक हो ही जाएगा. "
अब पत्रकार चुप, लाचार निगाहों से देखने लगी तब तक उक्त अधिकारी ने उस चैनल के एक बड़े धुरंधर को फ़ोन कर दिया और जो रिपोर्ट आई वाह-वाह ...

गृह विभाग व पुलिस अपनी जगह पर कभी-कभी शर्म आती है खुद को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहते हुए, लगता है कि वास्तव में हम तो पत्रकारिता का चौथा करने पर तुले हैं, आखिर क्यों 'मैनेज' होता है ये सब, यदि ऐसे नए पत्रकारों का ये हश्र होगा तो हम बस मैनेजर बन कर रह जायेंगे और पत्रकारिता कम से कम मैनेजरी नहीं होती. हमसे ये सब सहन नहीं हुआ तो एक गुस्ताखी हमने भी कर डाली,  तुरंत उनके एक उच्चाधिकारी से बात की और आजकल उपरोक्त अधिकारी निलंबन का प्रसाद पाकर झक मार रहे हैं.  रही बात उस धुरंधर की तो हालत  उनकी भी पतली है,  अब अंतगर्भ की तो रब जाने पर सच्चाई ये है की उस चैनल पर इसी पत्रकार की कारगुजारियों के चलते सरकारी छापे की खबर सबके साथ-साथ इस नाचीज़ ने भी सुनी है. छोड़ ना यार... सब चलता है.