गौतम बुद्ध ने
कहा था कि आपको यदि कोई गाली देता है और आप उसे ग्रहण नहीं करते तो वो उसी के पास
रह जाती है, अरे भाई राम का
चरित्र भी न होता अगर उनके सामने रावण नहीं होता. मेरा ऐसा मानना है कि जो लोग
हमारे काम को पसंद नहीं करते, उनसे ज्यादा महत्वपूर्ण वो लोग होते हैं
जो हमारे काम को पसंद करते हैं, इसलिए अपने से घृणा करने वाले लोगों की
परवाह करने की बजाय अपने सकारात्मक आलोचकों को महत्व दीजिये.
हज़ार लोगों ने पलके बिछाई, कुछ काँटों से चुभ राह छोड़ क्यों देते हो
ज़िन्दगी आग की दरिया है दोस्त, तप के आज कुंदन क्यों नहीं हो लेते हो
पीठ पीछे वार करना तो
कायरों की निशानी है पर अफ़सोस कायर को अपने वीर होने की ग़लतफहमी
और मुगालता सब से ज्यादा रहता है. पीठ पीछे कहना सुनना, दूसरों में दोष निकालना और चुगली के पंछी
को चुगलाना आजकल फैशन सा हो गया है, वैसा बर्ताव करना ही स्मार्ट कहलाता है.
कहते
हैं अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है . इसी लिए पुराने लोग जब परायी
गलियों का रुख करते थे तो हाथ में एक मोटा डंडा जरूर
रखते थे.
आदमी तो आदमियत कब का खो चुका, उस से आदमी होने की जिद क्यों करते हो
एक ढूंढो हज़ार मिलते हैं... दूर नहीं पास मिलते हैं, काम कायरों का पर मर्द के ताव सारे मिलते हैं
दूसरों को छोटा कह के आप अपने अहम् को तो क्षणिक संतोष दे सकते हो पर बड़े कभी नहीं बन सकते. हमेशा याद रखने लायक सच्चाई यही है कि सामाजिक जीवन में विषम परिस्थितियाँ अनेक बार उत्पन्न होती हैं, इन्हें पायदान समझ कर पद्दलित करते हुए आगे की सीढ़ी पर चले जाना चाहिए क्योंकि कमल कीचड़ के मध्य अपना सौन्दर्य, अपने खिलने की प्रवृति कभी नहीं छोड़ता.